अक्सर नये लेखक भ्रमित रहते हैं कि वे अपनी किताब किस माध्यम से प्रकाशित कराएं या उन्हें अपनी किताब सशुल्क प्रकाशित करानी चाहिए या नि:शुल्क प्रकाशित करानी चाहिए या अगर मैं लेखक हूँ तो मेरी किताब नि:शुल्क ही प्रकाशित होनी चाहिए। ऐसे ही कई तरह के भ्रम (धारणा) लेखक के मनोमस्तिष्क में डेरा डाले रहते हैं, जिस कारण वह अन्य प्रकाशित लेखकों से सलाह लेते है तो उसे कई बार सुनी-सुनाई बातों को ही सच मानना पड़ता है। लेखकों के बीच अधिकांश यह भ्रम (धारणा) फैला हुआ है कि हम लेखक है इसलिए हमें पुस्तकें नि:शुल्क प्रकाशित कराने का अधिकार है, जबकि यह भ्रम वास्तव में ही भ्रम (धारणा) है, जिसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है।
हमने कई बार नोटिस किया है कि अक्सर कुछ वरिष्ठ लेखक नये लेखकों से कहते हैं कि हमारी किताबें अब तक नि:शुल्क प्रकाशित हुई है और अब तक हमारी हर महीने हजारों में रॉयल्टी आ रही है। जब नया लेखक उनसे पूरे प्रोसेस की जानकारी मांगता है तो वे कोई जवाब नहीं देते है, न ही कोई सहयोग देते हैं, क्योंकि उनका काम होता है नये लेखकों को हतोत्साहित करना। बस यहीं से शुरू होता है नि:शुल्क प्रकाशन के अधिकार का भ्रम (धारणा)। जबकि यह भ्रम फैलाने वाले वे लेखक होते हैं, जिनकी सिर्फ शैक्षणिक पुस्तकें प्रकाशित होती है, वे वास्तविकता नहीं बताते हैं, बस नये लेखक को हतोत्साहित करके चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं। जाहिर सी बात है शिक्षा का बाजार इतना बड़ा है, तो वहां पर लेखक को रॉयल्टी भी हजारों लाखों में ही मिलेगी।
वहीं, कई बार ऐसे लेखक भी भ्रम फैलाते हैं जो साहित्य की दुनिया में वरिष्ठ होते हैं और उनके नाम से ही किताबें बिकती है जाहिर सी बात है जब नाम ही काफी है तो ऐसे लेखक को प्रकाशन के लिए खर्च करने की आवश्यकता ही नहीं है, इस बारे में भी आगे विस्तार से चर्चा की गई है। हम यहाँ इस आलेख में नि:शुल्क प्रकाशन के भ्रम (धारणा), पुस्तक प्रकाशन, रॉयल्टी, बेस्ट सेलर एवं कॉपीराइट से सबंधित जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं, साथ ही प्रकाशन उद्योग से जुड़ी कुछ भ्रांतियों का विश्लेषण भी आपके लिए प्रस्तुत है। आशा करते हैं कि यह जानकारी आपके लिए लाभप्रद होगी।
प्रकाशकों में अंतर
प्रकाशन व्यवसाय में होने के कारण अक्सर हम प्रतिदिन कई लेखकों से रूबरू होते हैं, उनमें से अधिकतर सिर्फ नि:शुल्क पुस्तक प्रकाशन के लिए प्रकाशक ढ़ूढ़ते हैं तो वहीं कुछ इस बात पर एतराज उठाते हैं कि प्रकाशक भुगतान लेकर प्रकाशन कार्य क्यों कर रहे हैं? वर्तमान में अक्सर लेखकों के बीच यह भ्रांति फैली हुई है कि लेखक का अधिकार है कि उसकी किताब नि:शुल्क प्रकाशित होनी चाहिए। जहाँ तक मेरी जानकारी में तो यह तो कोई मूल अधिकार नहीं है, जिसमें लेखक की किताब नि:शुल्क प्रकाशित करने का उल्लेख हो, लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पुस्तक प्रकाशन मुख्यतया: दो तरह के मॉडल पर कार्य करता है- ट्रेडिशनल पब्लिशिंग एवं सेल्फ पब्लिशिंग, अर्थात प्रकाशक दो तरह के होते हैं, जिसमें से एक ट्रेडिशनल पब्लिशर और दूसरा सेल्फ पब्लिशर। एक लेखक को दोनों तरह के प्रकाशकों में अंतर जानना जरूरी हैं।
ट्रेडिशनल पब्लिशिंग क्या है?
ट्रेडिशनल प्रकाशक लेखक की किताबें पूर्णतया नि:शुल्क प्रकाशित करते हैं, ऐसे प्रकाशकों को ट्रेडिशनल प्रकाशक (Trade or Traditional Publisher)। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि प्रत्येक लेखक की किताबें गारंटीड प्रकाशित की जाती हैं। जी हाँ, आप सही पढ़ रहें हैं, ट्रेडिशनल पब्लिशर अक्सर लेखक की प्रोफाइल, कंटेंट की मजबूती और लेख के खुद का पाठक वर्ग या फॉलोवर्स का अवलोकन करने के बाद ही लेखक की किताब को नि:शुल्क प्रकाशित करते हैं। वहीं, कई बार रॉयल्टी के रूप में अग्रिम भुगतान भी करते हैं। अगर प्रकाशक को लेखक की प्रोफाइल या फॉलोवर्स या लेखक के कंटेंट में दम नजर नहीं आता है, तो वे बिना कोई कारण बताए लेखक के प्रपोजल को रिजेक्ट कर देते हैं।
वहीं, यदि आपकी पांडुलिपी स्वीकृत हो जाती है तो आपकी किताब को प्रकाशित होने में कम से कम 6 माह से लेकर 2 वर्ष तक लग जाते हैं। इसके बाद आपको वार्षिक आधार पर रॉयल्टी दी जाती है। अक्सर ट्रेडिशनल पब्लिशिंग में पुस्तक के कवर से लेकर मार्केट तक के सभी निर्णय प्रकाशक की टीम लेती है, लेखक से कोई सलाह या सुझाव नहीं लिए जाते हैं, अर्थात लेखक सिर्फ पांडुलिपी तक ही सीमित रहता है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि अगर आपकी सोशल प्रोफाइल हाई-फाई है और आपका स्वयं का वास्तविक फैन फॉलोविंग बहुत ज्यादा है या आपका चेहरा ही किताबें बिकने के लिए काफी है, तो ऐसी स्थिति में आपको ट्रेडिशनल प्रकाशक से ही संपर्क करना चाहिए, क्योंकि ऐसे लेखकों को ट्रेडिशनल प्रकाशक ज्यादा महत्व देते हैं। ऐसे लेखकों से प्रकाशक को उम्मीद होती है कि उनकी लागत व खर्च निकल जाएगा और वे मुनाफा भी कमा लेंगें। जाहिर सी बात है कि प्रकाशक मुनाफा कमाएगा तो लेखक की रॉयल्टी भी ठीक-ठाक ही बनेगी।
सेल्फ पब्लिशिंग क्या है?
सेल्फ पब्लिशर्स लेखक से भुगतान लेकर लेखक को प्रकाशन सेवाएं प्रदान करते हैं, इस तरह के प्रकाशकों को सेल्फ पब्लिशर (Self Publisher)। अक्सर सेल्फ पब्लिशिंग में लेखक की पुस्तक 15 दिन से लेकर महीना भर में प्रकाशित हो जाती है, जैसा कि अब तक तक हमारे प्रकाशन हाउस का अनुभव रहा है। सेल्फ पब्लिशिंग में अक्सर कोई भी प्रकाशक लेखक के कंटेंट को रिजेक्ट नहीं करता है, क्योंकि यह लेखक का अधिकार है कि वह भुगतान करके अपनी रचनाओं को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करा सके। सेल्फ पब्लिशिंग प्रकाशक लेखक की प्रोफाइल, फॉलोवर्स को देखते हुए पुस्तक प्रकाशन नहीं करते हैं, बल्कि वे लेखक के पुस्तक प्रकाशन के सपने को पूरा करने के लिए लेखक की हर संभव सहायता करते हैं, लेकिन सशुल्क।
वहीं, सेल्फ पब्लिशिंग में लेखक के पास पुस्तक से सबंधित सारे अधिकार होते हैं, क्योंकि लेखक अपनी किताब प्रकाशित करने के लिए पैसा खर्च कर रहा है। लेखक किताब के कवर डिजाइन से लेकर मार्केटिंग तक सबके लिए स्वयं निर्णय ले सकते हैं, अर्थात किसी प्रकाशक के हाथों की कथपुतली मात्र नहीं रहते हैं। इस तरह सेल्फ पब्लिशिंग मॉडल में किताब प्रकाशित कराने में लेखक को रॉयल्टी भी साप्ताहिक, मासिक या त्रैमासिक आधार पर प्राप्त होती है। जहाँ तक मुझे जानकारी है लेखक की पुस्तक नि:शुल्क ही प्रकाशित होगी, यह लेखक का कोई अधिकार नहीं है।
क्या आपके नाम या चेहरे से किताबें बिक सकती हैं
यदि आपको लगता है कि आप अपनी किताब अपने चेहरे से ही बेच पाएंगें या आपको लगता है कि आपकी किताब आपके नाम पर ही बिक जाएगी, मेरी सलाह यही है कि आप ट्रेडिशनल प्रकाशक से संपर्क करिए, उन्हें भरोसा दिजिए कि आपकी किताब बिकने के लिए आपका नाम ही काफी है। यदि ट्रेडिशनल प्रकाशक से बात नहीं बनती है तो सेल्फ पब्लिशिंग प्रकाशक से संपर्क करें लिखित में उनके साथ एग्रीमेंट करें कि आपके नाम पर ही हजार से अधिक प्रतियाँ बिक जाएगी, नहीं बिकने पर उनके समय और किताब की प्रिन्टिग पर हुए खर्च को आप अपनी ओर से वहन करेंगे। साथ ही रॉयल्टी के प्रतिशत पर भी खुलकर बातें करें और रॉयल्टी का प्रतिशत भी लिखित में प्रकाशक से मांगें।
वहीं, अगर आपको लगता है कि आप अपनी किताब को अपने चेहरे या नाम पर बेच नहीं पाएंगें तो आप नि:शुल्क किताब प्रकाशित कराने का विचार त्याग दिजिए या पैसे खर्च कर सेल्फ पब्लिश कराने पर विचार करें। सशुल्क भी किताब प्रकाशित नहीं कराना चाहते हैं तो किताब को प्रकाशित करने का विचार ही त्याग दिजिए।
क्या सशुल्क किताब प्रकाशन गैरकानूनी या अवैध है?
हमारे पास अक्सर कई लेखक संपर्क करते हैं और अधिकतर यही पूछते हैं कि आप पैसे क्यों ले रहे हो? हमारा सीधा साधा सा जवाब होता है कि हमारा प्रकाशन हाउस Prachi Digital Publication सेल्फ पब्लिशिंग मॉडल पर कार्य कर रहा है, हमारी प्रत्येक सेवा के लिए आपको भुगतान करना होगा। वहीं, कुछ कहते हैं कि आप लोगों ने प्रकाशन को पैसे कमाने का व्यापार बना लिया है, तो हम कहते हैं कि हाँ जी, बिल्कुल! यह एक व्यापार या बिजनेस मॉडल ही है, जो कि सर्वमान्य है। लेखक से पैसे लेकर किताब प्रकाशित करना कोई अवैध कार्य या गैरकानूनी कार्य या ब्लैक मार्केट का कार्य या अवैध बिजनेस मॉडल नहीं है। पूरे विश्व में सेल्फ पब्लिशिंग एक सर्वमान्य बिजनेस मॉडल है, किसी भी देश की सरकार ने सेल्फ पब्लिशिंग बिजनेस मॉडल को ब्लैक लिस्टेड या अवैध कार्य या गैरकानूनी कार्य की श्रेणी में नहीं रखा है।
वहीं, सेल्फ पब्लिशिंग प्रकाशक लेखक को पुस्तक प्रकाशन संबंधित सभी सेवाओं के लिए निर्धारित चार्ज बताकर सेवाएं प्रदान करता है, न कि गैरकानूनी तरीके से या टेबल के नीचे से पैसे लेकर काम करता है। किताब के प्रकाशन का जो भी चार्ज होता है, वह लेखक के सामने होता है। यदि सेवाओं के लिए चार्ज लेखक के बजट में हो तो सेवाएं ले, यदि लेखक हमारी सेवाएं नहीं भी लेते हैं तो हमारे प्रकाशन की ओर से बार-बार आग्रह करके लेखक को परेशान भी नहीं किया जाता है।
किताब प्रकाशन सशुल्क क्यों?
यह बात भी विचार करने योग्य है कि जब डॉक्टर अपनी सलाह देने की फीस लेते है, वकील अपनी सलाह की फीस लेते हैं, स्कूल शिक्षण के लिए शुल्क ले रहा है, नाई बाल काटने के पैसे ले रहा है, रेस्टोरेंट अपनी सेवा के लिए चार्ज ले रहें हैं और अन्य तरह के सभी बिजनेस भी अपनी सेवाओं के लिए चार्ज ले रहें हैं, तो सेल्फ पब्लिशिंग सेवा उपलब्ध कराने वाला प्रकाशक अपनी सेवा के लिए शुल्क क्यों न ले? जबकि प्रकाशक लेखक की किताब का डिजाइन बनाता है, किताब की सेटिंग करता है, किताब में प्रूफ में समय देता है, किताबें प्रिन्ट करता है, स्टॉक खत्म होने पर दोबारा से प्रिन्ट करता है, लेखक की किताबों को पाठकों के लिए उपलब्ध कराता है और इसके अलावा लेखक के सहयोग के लिए वह एक टीम उपलब्ध कराता है जो लेखक की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहती है।
प्रकाशन के संचालन हेतु फंडिंग
मुझे ये बताएं कि क्या किताबें नि:शुल्क प्रिन्ट होती है? क्या प्रकाशक का स्टॉफ बिना सेलरी के अपनी सेवाएं देता हैं? क्या प्रकाशक के ऑफिस में बिजली का बिल नहीं आता है? क्या प्रकाशक का टेलीफोन और ब्राॅडबैंड का बिल भी नहीं आता है? इन सब सवालों का जवाब सभी जानते हैं, क्योंकि सेल्फ पब्लिशिंग प्रकाशन भी एक बिजनेस मॉडल है।
वहीं, नि:शुल्क किताब प्रकाशन की वकालत करने वाले बता सकते हैं कि क्या प्रकाशक को सरकार से कोई फंडिंग मिलती है या किसी अन्य स्वयं सेवी संस्था से अनुदान मिलता है या गैर सरकारी आर्थिक सहायता प्राप्त हो रही है, जो प्रकाशक नि:शुल्क प्रकाशन सेवाएं उपलब्ध कराए। मुझे नहीं लगता है कि प्रकाशक होने का यह मतलब होता है कि अपना घर फूंककर तमाशा देखो। सेल्फ पब्लिशर्स भी अपनी सेवाएं कुछ लाभ प्राप्त करने के लिए दे रहे हैं।
वहीं, अगर प्रत्येक प्रकाशक हर लेखक के लिए नि:शुल्क प्रकाशन सेवा उपलब्ध कराना शुरू कर दे, तो मुझे लगता है कि सेल्फ पब्लिशिंग उद्योग ही खत्म हो जाएगा, क्योंकि नि:शुल्क का कोई महत्व नहीं होता है, न ही लेखक नि:शुल्क सेवा या उत्पाद का महत्व समझते हैं। वहीं, फिर कुछ बड़े प्रकाशन हाउस का दबदबा कायम रहेगा, जो सिर्फ पहले से स्थापित लेखक को ही अवसर प्रदान करेंगें और बाकी जो लेखक सेल्फ पब्लिशिंग कर भी रहें हैं, वे अपनी किताबें स्थानीय (Local) प्रिन्टर से प्रिन्ट कराकर अपने घर की अलमारियों में ही सजाकर रख सकेंगें।
नि:शुल्क प्रकाशन में लेखक की उदासीनता
मैं अपना अनुभव बताता हूँ, हमारे प्रकाशन हाउस Prachi Digital Publication ने शुरूवात में कुछ किताबें नि:शुल्क प्रकाशित की थी, जिसके फलस्वरूप नि:शुल्क प्रकाशित लेखकों को अपनी छवि बहुत बड़े लेखक वाली दिखने लगी और उन्होंने रॉयल्टी, लेखकीय प्रतियाँ के साथ ही कई डिमांड करनी शुरू कर दी। उनकी बातों से हमें लगा शायद उनके नाम पर किताबें काफी बिकेंगी, इसलिए इतनी बड़ी-बड़ी बातें और ज्यादा डिमांड कर रहें हैं। सबसे बड़ी बात उन्होनें आज तक अपनी पुस्तक के बारे में अपने सोशल मीडिया पर शेयर भी नहीं किया, न ही किसी को रेफर किया, क्योंकि नि:शुल्क सेवा मिल गई, जिसका कोई महत्व नहीं होता है या समझ लिजिए खैरात में मिल गई।
नि:शुल्क प्रकाशन के वाक्ये से मुझे ‘ढ़ाक के दो पात’ वाली कहावत सत्यार्थ होती दिखी, उन सम्मानित लेखक की प्रकाशित पुस्तक की आज तक मात्र दो से तीन प्रतियाँ बिकी, लेकिन प्रकाशक का अर्थात हमारा सारा स्टॉक आज रद्दी हो गया है। मैं यह गांरटी के साथ कह सकता हूँ कि हम नि:शुल्क सेवा ही करते रहते तो शायद हमें प्रकाशन को बंद करना पड़ता। मेरी छोड़िए, मैंने अपने प्रकाशन सफर में कई प्रकाशनों को बंद होते देखा है, जिनमें से अधिकांश नि:शुल्क प्रकाशन सेवाएं उपलब्ध कराने के कारण बंद हुए हैं।
वहीं, मान लिजिए यदि कोई भी ट्रेडिशनल प्रकाशक देश के प्रत्येक लेखक की किताब को नि:शुल्क प्रकाशित करने का बीड़ा उठा ले, तब वह प्रकाशक जल्द ही दिवालिया घोषित हो जाएगा क्योंकि सोशल मीडिया की बदौलत वर्तमान में देश के छोटे से छोटे शहर की हर गली- मौहल्ले में एक साहित्यकार या लेखक है, इनमें से अधिकतर लेखकों की यही चाहत रहती है कि उनकी किताब नि:शुल्क प्रकाशित हो।
यह बात भी सौ प्रतिशत सच है, यदि किसी भी लेखक की किताब नि:शुल्क प्रकाशित कर दी जाए, तो वह लेखक अपनी किताब का प्रमोशन अधिकतम सप्ताह भर ही करेगा। उसके बाद वह भूल जाएगा कि उसकी कोई किताब भी प्रकाशित हुई है, क्योंकि फिर उसे किताब को प्रमोट करना बहुत नीरस कार्य महसूस होता है या वह सोचता है कि अब किताब प्रकाशित हो गई है और बिकेगी तो रॉयल्टी मिल ही जाएगी, नहीं बिकेगी तो भी मुझे क्या फर्क पड़ना है, क्योंकि मैने कुछ खर्च तो किया ही नहीं है। कई बार लेखक को सिर्फ किताब प्रकाशित होने से मतलब होता है, चाहे वह बिके या न बिके, क्योंकि उन्हें सिर्फ प्रकाशित लेखक होने का तमगा चाहिए होता है।
यही कारण है कि ट्रेडिशनल प्रकाशक सिर्फ दूध में से मलाई की तरह सिर्फ उन्हीं लेखकों का चयन करते हैं, जो पहले से ही स्थापित हैं, या उनका नाम किताब बेचने के लिए काफी है। ताकि उनका प्रकाशन हाउस का भविष्य बना रहे अर्थात प्रकाशन बंद होने की कगार पर न पहुँचे और प्रकाशन हाउस से जुड़े सैकड़ों लोगों का रोजगार चलता रहे।
एक बिजनेस के रूप में नि:शुल्क सेवाएं
आप स्वयं ही सोचिए आप भी नौकरी या बिजनेस कर रहें है, क्या आपने कभी किसी के लिए नि:शुल्क कार्य किया है। एक या दो बार किया भी होगा, लेकिन हमेशा नहीं कर सकते हैं, उसी तरह से प्रकाशक को भी अपने लाभ के बारे में सोचने का अधिकार है, उसे अपने स्टॉफ को सेलरी देनी होती है, बिजली का बिल, इन्टरनेट का बिल और कई खर्च होते हैं जो अक्सर सभी बिजनेस में होते हैं, साथ ही प्रकाशन व्यवसाय को बनाएं रखने के लिए भी लगातार इन्वेस्टमेंट करना होता है। इतने सारे खर्चे होने के बाद आप स्वयं सोच सकते हैं कि आप कब तक बिना लाभ के किसी के लिए नि:शुल्क कार्य कर सकते हैं।
वहीं, ट्रेडिशनल प्रकाशक भी नि:शुल्क प्रकाशन से पूर्व सर्वप्रथम अपना लाभ देखता है कि संबंधित लेखक की किताब उसके कंटेंट के दम पर या लेखक की प्रोफाइल के अनुसार बिकेगी भी या नहीं। उसके बाद ही वह अपना लाखों का इन्वेस्टमेंट लेखक की किताब पर करता है, क्योंकि ट्रेडिशनल प्रकाशक काे भी अपने बिजनेस को बचाए रखने के लिए लगातार इन्वेस्टमेंट करना होता है।
कम या ज्यादा रॉयल्टी का भ्रम
अक्सर लेखक कहते हैं कि आप कम रॉयल्टी दे रहें है, ऐसी स्थिति में लेखकों को हम सिर्फ एक सलाह देते हैं कि आप किताबें स्थानीय (Local) प्रिन्टर से प्रिन्ट कराएं और अपने स्तर से बेचिए, पूरा लाभ आपको ही मिलेगा। बात भी सही है, इसमें कोई बिचौलिया नहीं होगा, लेखक का सारा लाभ लेखक को ही प्राप्त हो जाएगा। अक्सर लेखक कहते हैं कि इतना बड़ा लाभ तो आप अकेले ही ले जा रहें हैं, हमें तो आप कुछ नहीं दे रहें है। आपकी जानकारी के लिए बता देना चाहूंगा कि प्रिन्ट ऑन डिमांड में प्रत्येक पुस्तक की कॉस्ट ज्यादा आती है।
फिर इतना ही नहीं, अमेजन या फ्लिपकार्ट की ब्रांडेड पैकेजिंग मैटिरियल उनसे ही अपने खर्च पर खरीदना होता है, साथ ही अमेजन व फ्लिपकार्ट की सेलिंग फीस, प्रिन्टिंग, डिस्ट्रीब्यूशन एवं अन्य सहयोगी पार्टनर का शेयर भी देना होता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अक्सर हम अपने भावी लेखकों की उम्मीद पर खरा न उतरते हुए साफ-साफ मना करते हुए कह देते हैं कि हम आपकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाएंगें, इसलिए हम आपकी किताब प्रकाशित करने में असमर्थ हैं, क्योंकि शुरूवात में बड़े वादे करके बाद में मुकर कर पैसा कमाना हमारे पब्लिकेशन की पॉलिसी में बिल्कुल भी नहीं है, न ही भविष्य में हाेगा।
इसके अलावा एक लेखक को यह भी जानना चाहिए। अक्सर कई पाठक अमेजन या फ्लिपकार्ट से किताबें मंगाते हैं और एक दो दिन के बाद कमियाँ बताकर किताबें वापस कर देते हैं, अब यह नुकसान की भरपाई कौन करेगा? जाहिर सी बात है प्रकाशक या उसके प्रिन्टिग या डिस्ट्रीब्यूशन या अन्य सहयोगी पार्टनर ही नुकसान की भरपाई अपने स्तर से करेंगें, लेखक से तो नहीं भरपाई नहीं मांगी जाती है। जब किताब वापस आती है तो पहले पाठक, फिर कोरियर वाले उसका बुरा हाल कर देते है, वह हमसे बेहतर कौन समझ सकता है। वहीं, अमेजन और फ्लिपकार्ट पर प्रकाशक या सेलर की कोई सुनवाई नहीं होती है, क्योंकि उनके ग्राहक उनके लिए महत्वपूर्ण हाेते हैं, सेलर या प्रकाशक नुकसान को नुकसान हो जाए, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।
100% प्रतिशत रॉयल्टी क्या है?
रॉयल्टी प्राप्त करना प्रत्येक लेखक का अधिकार है, किताब चाहे सेल्फ पब्लिशर के माध्यम से प्रकाशित हो या ट्रेडिशनल पब्लिशर के माध्यम से प्रकाशित हो। आमतौर पर नये लेखक भ्रम में रहते हैं कि कुछ प्रकाशक 100% रॉयल्टी देते हैं, तो कई प्रकाशक 70% रॉयल्टी देते हैं। प्रकाशन से पूर्व लेखक को यह भी जानना चाहिए कि 100% या 70% रॉयल्टी रॉयल्टी का माजरा क्या है। जैसा कि मैं ऊपर बता चुका हूँ कि प्रिन्ट ऑन डिमांड में प्रति किताब की कॉस्ट ज्यादा आती है, फिर बाकी के व्यय भी अलग से जुड़ते हैं जैसे कि प्रति पुस्तक की प्रिन्टिंग, डिस्ट्रीब्यूशन एवं अन्य सहयोगी पार्टनर का शेयर, ईकॉमर्स स्टोर की ब्रांडेड पैकेजिंग के साथ अन्य टैक्स इत्यादि। सेल्फ पब्लिशर द्वारा बेची गई एक किताब की एमआपी से उपरोक्त सभी खर्च (प्रति पुस्तक की प्रिन्टिंग, डिस्ट्रीब्यूशन एवं अन्य सहयोगी पार्टनर का शेयर, ईकॉमर्स स्टोर की ब्रांडेड पैकेजिंग के साथ अन्य टैक्स इत्यादि) को घटाकर जो शेष बचता है, उसे 100% प्रॉफिट या रॉयल्टी कहा जाता है।
यह शेष प्रॉफिट या रॉयल्टी लेखक को 100% रॉयल्टी के रूप में दी जाती है। वहीं, कुछ प्रकाशक इस 100% शेयर में से भी सिर्फ 60-85% तक लेखक को देते है, जो कि प्रत्येक प्रकाशक की वेबसाइट पर उल्लेखित होता है। अब आप समझ गये होंगें कि 100% या 70% या इससे कम प्रतिशत रॉयल्टी किस प्रकार निर्धारित की जाती है। दरअसल कई नये लेखक बताते हैं कि दूसरा प्रकाशक तो हमें 70% रॉयल्टी दे रहा है। आप तो हमें पुस्तक के मूल्य से बहुत कम रॉयल्टी दे रहे हैं, ये तो गलत बात है। हम उन्हें उपरोक्त जानकारी देते हैं, और उनसे कहते हैं कि आपकी किताब की कीमत 200 रूपये है, तो उस प्रकाशक से पूछिए वो आपको 70% के अनुसार कितने रूपये रॉयल्टी दी जाएगी। प्रकाशक से जवाब मिलने के बाद उन्हें कुछ समझ आता है और हमें बताते हैं कि उन्होनें ऐसा कहा है। तब वे बताते हैं कि हमें लगा कि पुस्तक के मूल्य का 70% रॉयल्टी के रूप में दिया जाएगा। तब जाकर उन्हें यह बात समझ आ जाती है कि 70% का तात्पर्य क्या है।
वहीं, अक्सर लेखक कहते हैं कि हमें प्रकाशक रॉयल्टी समय पर नहीं दे रहा है या रॉयल्टी कम दे रहा है या पुस्तक की सेल्स रिर्पोट नहीं दे रहा है। ऐसे मामलों में प्रत्येक लेखक को प्रकाशक का पब्लिशिंग सेवा का अनुबंध जरूर पढ़ लेना चाहिए और प्रकाशक से कहें कि रॉयल्टी की समय सीमा एवं रॉयल्टी भुगतान का विवरण साफ-साफ अंकों व शब्दों में अवश्य अंकित करे, ताकि भविष्य में कोई परेशानी न हो, क्योंकि कोई भी बिजनेस हो या कोई प्रकाशन हाउस, पारदर्शिता और बेहतर सेवाओं से ही वह सफल होता है। न कि खराब सेवाओं और अपारदर्शिता से, बल्कि लापरवाही और अपने ग्राहकों की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने पर अक्सर बिजनेस हो या प्रकाशन सब बंद ही हो जाता है।
सस्ते में सेल्फ पब्लिशिंग और लेखक की अपेक्षाएं
वहीं, यदि लेखक सेल्फ पब्लिशर के माध्यम से पुस्तक प्रकाशन का रास्ता चुनता है तो अक्सर सभी लेखकों को सबसे सस्ता पैकेज चाहिए होता है। साथ ही ऐसे लेखकों की सुविधाओं की जो डिमांड होती है वह लाखों के खर्च वाली होती है। हमने लेखकों की जरूरतों एवं बजट को ध्यान में रखते हुए हमारे प्रकाशन हाउस Prachi Digital Publication के प्रिन्ट ऑन डिमांड पब्लिशिंग प्लान डिजाइन किए गए हैं, जो किसी भी नये लेखक के लिए बेस्ट हैं। लेकिन कई लेखक सस्ते पब्लिशिंग प्लान में पेड प्रमोशन या मार्केटिंग, जिसमें कम से कम तीस हजार का इन्वेस्टमेंट जरूरी है, जो लेखक नहीं करना चाहते हैं लेकिन प्रकाशक से नि:शुल्क चाहते हैं। भई! लेखक को भी कुछ मेहनत करनी पड़ेगी, तभी सफलता मिलेगी। हाथ पर हाथ रखकर सोचने से आज तक किसी को कोई सफलता नहीं मिली है।
यदि लेखक पैसा खर्च भी करते हैं तो उसके बाद भी रिजल्ट की कोई गारंटी नहीं होती है, क्योंकि विज्ञापन या मार्केटिंग एजेंसी (सर्विस प्रोवाडर) की ओर से किसी भी प्रकार की गारंटी नहीं दी जाती है तो प्रकाशक कहाँ से लेखक को दे सकता हैं। गारंटीड बिक्री के लिए भी कोई भी प्रकाशक या सेलर गांरटी नहीं दे सकता है, क्योंकि पाठक को खरीदने के लिए दबाव तो नहीं बनाया जा सकता हैं, इसके बारे में आगे चर्चा की गई है। पुस्तक के मूल्य पर कम से कम पचास प्रतिशत रॉयल्टी, जो कि संभव ही नहीं है क्योंकि प्रिन्ट ऑन डिमांड या इंवेट्री मैनेजमेंट मॉडल में किसी भी प्रकाशक को कई प्रिन्टिंग, डिस्ट्रीब्यूशन एवं अन्य सहयोगी पार्टनर के साथ एक चैन की तरह काम करना होता है, ताकि लेखक की किताब कभी भी आउट ऑफ स्टॉक न रहे, जिस कारण प्रिन्टिंग एवं सहयोगी पार्टनर भी शेयर होता है और अधिक लेखकीय प्रतियाँ के अलावा कई ऐसी डिमांड करते हैं, जिसके लिए कॉस्ट बढ़ जाएगी, लेकिन लेखक उसके लिए कॉस्ट नहीं देना चाहते हैं।
बेस्ट सेलर की गारंटी, लेकिन कैसे?
अक्सर मैं कई लेखकों से बात करता हूँ तो वे कहते हैं कि आप हमें बेस्ट सेलर बना सकते हैं तो मैं आज ही आपके पब्लिशिंग प्लान के अनुसार आपको भुगतान करके अपनी पांडुलिपी भेज दूंगा। ऐसे कई लेखकों को मै साफ शब्दों में मना कर देता हूँ कि आपकी किताब हम प्रकाशित नहीं कर पाएंगें, साथ ही बताता हूँ कि हम आपकी किताब का लेआउट बना सकते हैं, एडिटिंग कर सकते हैं, प्रूफ रिडिंग कर सकते हैं, प्रिन्ट कराकर प्रकाशित कर सकते हैं और यह गारंटी दे सकते हैं कि जब तक लेखक अपना सेल्फ पब्लिशिंग अनुबंध हमारे रखते हैं, तब तक लेखक की किताब आउट ऑफ स्टॉक नहीं रहेगी। लेकिन हम आपको झूठी दिलासा बिल्कुल नहीं दे सकते हैं। आपको बता दूं कि बेस्ट सेलर हमारा प्रकाशन ही नहीं, अन्य कोई भी प्रकाशक आपको नहीं बना सकता है, जब तक आप स्वयं अपनी किताब को जमीनी स्तर पर समय नहीं दे सकते हैं या प्रमोशन या मार्केटिंग रणनीति नहीं बनाते हैं।
अगर आप वास्तव में बेस्ट सेलर बनना चाहते हैं तो आपको अपनी किताब के प्रमोशन पर स्वयं एक जूनून की तरह कार्य करना होगा, पैसा खर्च करना होगा और अधिकांश समय देना होगा। जिस तरह से कोई भी बिजनेसमैन अपने बिजनेस के लिए दिन-रात काम करता है, जैसे एक खिलाड़ी का ध्यान सिर्फ उसके गोल पर होता है, क्रिकेट में बॉलर का ध्यान विकेट पर, बैटसमैन का ध्यान बॉल पर उसी तरह से आपका ध्यान बेस्ट सेलर बनने पर होना चाहिए। तभी आप बेस्ट सेलर लेखक की श्रेणी में आ सकते हैं।
अक्सर कई प्रकाशक इस तरह के विज्ञापन चलाते हैं कि अगले बेस्ट सेलर बनें। ऐसे कैसे आप बेस्ट सेलर बना देंगें, जब तक किताब ही नहीं बिकेगी। जबकि सत्य इसके विपरित है और यह भी लेखक के मन का एक भ्रम है कि प्रकाशक को विज्ञापन या मार्केटिंग का चार्ज देने के बाद प्रकाशक उसे बेस्ट सेलर बना देगा। लेखक ही क्यों, हम भी जब अपने प्रकाशन का विज्ञापन करते हैं तो हमारे विज्ञापन सर्विस प्रोवाइडर हमें यह गारंटी नहीं देते है कि आपके यहाँ नये लेखक जुड़ेंगें और आपसे काम कराएंगें। उसी तरह से प्रकाशक को अगर आप चार्ज दे रहें हैं तो उनकी पॉलिसी में यह उल्लेखित होता है कि भुगतान के बदले में यह गांरटी नहीं है कि आपको रिजल्ट मिलेगा। इसलिए मेरी सलाह यही है कि बेस्ट सेलर बनने के लिए भ्रम और दिखावे पर न जाकर जमीनी स्तर पर मेहनत करिए।
कॉपीराइट के बारें में भी जानें
अब आते हैं कॉपीराइट पर, यदि आप लेखक हैं तो आपको अपनी किताब का कॉपीराइट जरूर कराना चाहिए, क्योंकि कॉपीराइट आपके लेखन, समय और मेहनत की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। आजकल सोशल मीडिया पर किसी भी लेखक के कंटेंट को चुराकर अपने नाम से प्रकाशित कर दिया जाता है, कई बार बिना साभार के प्रकाशित कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यदि आपके पास कॉपीराइट प्रमाण पत्र है तो आप कंटेंट की चोरी पर मानहानि या कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं। आप अपने नुकसान की भरपाई के लिए कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं। अक्सर मैंने देखा है कि लेखक थोड़े से खर्च को बचाने के चक्कर में कॉपीराइट नहीं कराते हैं। मैं तो हमारे प्रकाशन के लेखकों को यह भी सलाह देता हूँ कि आप स्वयं आवेदन किजिए और हमारी मदद लिजिए। हम आपकी हर संभव सहायता के तैयार हैं, कई लेखक स्वयं आवेदन करते हैं और निर्धारित समय में उनका कॉपीराइट प्रमाण पत्र प्राप्त हो जाता है।
मेरी सलाह है कि प्रत्येक लेखक को कॉपीराइट अवश्य कराना चाहिए, क्योंकि भारत में कॉपीराइट प्रमाण पत्र की वैधता 60 वर्ष तक मान्य रहती है, अर्थात आपकी पुस्तक का कंटेंट 60 वर्षों के लिए सुरक्षित हो जाता है। यही नहीं, आपके बाद भी आपकी पुस्तक के कंटेंट का दुरूपयोग को रोकने या कंटेंट को भविष्य में सदुपयोग या लाभ प्राप्त करने के लिए आपके परिवार का कोई भी सदस्य कॉपीराइट प्रमाण पत्र को पॉवर ऑफ अर्टानी के अर्न्तगत या वसीयतनामा अधिकार का प्रयोग करते हुए अपने नाम पर ट्रांसफर करा सकते है।
किताबें खरीदकर पढ़ें, लेखक को सहयोग करें
अंत में लेखकों और पाठकों को बताना चाहूंगा कि अक्सर कई लेखक कहते हैं कि हमारे रिश्तेदार, मित्रगण नि:शुल्क प्रतियाँ मांगते हैं और मैं मना नहीं कर पाता हूँ, जिस कारण प्रकाशन में खर्च तो हुआ ही अब काफी खर्च बांटने में हो जाएगा। ऐसे मामले में मैं इतना कहूंगा कि मित्रों संबंधियों को समझाएं कि लेखक की कृति को आगे बढ़ाने में सर्वप्रथम हमारे परिचितों, मित्र मंडली का सहयोग जरूरी है, यदि हमारे मित्र या परिचित ही हमें सहयोग नहीं करेंगें या अपने परिचितों में अपने मित्र लेखक की पुस्तक के बारे में नहीं बताएंगें तो कैसे उसके लेखन में आपका सहयोग मिलेगा, इसलिए आप सभी का सहयोग और आर्शिवाद अवश्य दें।
यदि एक पाठक किताब को नहीं खरीदेगा तो कैसे एक लेखक प्रेरित होगा, क्योंकि किताबें नहीं बिकेगी तो लेखक को रॉयल्टी भी नहीं मिलेगी। जिससे लेखक का मनोबल कम हो जाता है और वह अपने लेखक को विराम देने की ओर अग्रसर हो जाता है। आप एक पाठक हैं तो आप अपने मित्र लेखक की किताब खरीदें और अपने मित्रों को भी किताब खरीदनें के लिए प्रेरित किजिए, सोशल मीडिया पर शेयर किजिए। अगर आप अपने मित्र लेखक की किताब भी नहीं खरीद रहें हैं तो कम से कम अपने मित्र मंडली के ग्रुप में शेयर तो करें, ताकि लेखक की किताब के प्रति जागरूकता बढ़े और आपके लेखक मित्र का मनोबल बढ़े।
Written by Rajender Singh Bisht
(लेखक प्रकाशन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं और इससे पूर्व लगभग दस वर्ष तक पत्रकारिता में रह चुकें है।)
लाजवाब। सभी सवालों का बहुत अच्छे ढंग से संतुष्टिपूर्ण जवाब दिया है, आपने।
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी आदरणीय । आपनें लेखकों के मन में अक्सर उठनें वाली शंकाओं का समाधान करनें का प्रयास किया है ।
बहुत सुंदर, शानदार एवं जानदार आलेख है। ये सब सच है इससे जितनी जल्द रूबरू हो जायें उतना ही बेहतर होगा हरेक लेखक लिए।
Bahut hi sunder dhang se sari baat rakhi hai .Jo ki sach hai .Poori transperancy se sari baatein batai hai apne. Prachi publication ko bahut bahut mubarak.
Aap bahut hi acha kaam kar rahe hai.
यह जानकारी अभी सभी लेखको के पास नही हैं, बहुत अच्छे ढंग से समझाया गया, बहुत बहुत धन्यबाद
नवोदित रचनाकारों के लिए बहुत ही उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक लेख।
लेखक महोदय को बहुत-बहुत धन्यवाद।
किताब प्रकाशन के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण और सविस्तर जानकारी शेयर करने हेतु धन्यवाद।
वाकई विभिन्न जानकारियों के साथ बहुत उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक लेख।
वाकई बहुत ही सुन्दर ढंग से बताया गया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय जी। इतना अच्छा आज तक किसी ने भी नहीं बताया है। इतनी बारीकी से समझा कर सभी साहित्यकारों की सहायता किये है।
जितनी प्रसंशा की जाय कम है। मुझे काफी जानकारी और सहायता मिली है।
भविष्य में अवश्य ही आपसे प्रकाशन करवाऊंगा।
बहुत बहुत धन्यवाद करना चाहूंगा कि इतनी अच्छी तरीके समझाया मै अपनी पुस्तक जरूर प्रकाशित करना चाहूंगा।
Very nice this information
Thank you so much for very good ditailed information of writer, publisher’s & royalty.