पिछले दिनों प्राची डिजिटल पब्लिकेशन के द्वारा काव्य प्रभा साझा काव्य संग्रह प्रकाशित किया गया है। जिसका संपादन सुधा सिंह ‘व्याघ्र’ द्वारा किया गया है। ‘काव्य प्रभा’ में देश भर से कई कवियो ने प्रतिभाग किया है, जिनमें से कुछ कवियो के साक्षात्कार प्रकाशित किये जा रहे हैं। पेश है ‘काव्य प्रभा’ काव्य संग्रह के एक लेखक अभिषेक कुमार ‘अभ्यागत’ जी से साक्षात्कार-
indiBooks : क्या आप अपने शब्दों में हमारे सम्मानित पाठकों को अपना परिचय देना चाहेंगे? क्योंकि आपके शब्दों में हमारे पाठक आपके बारे में ज्यादा जान पाएंगे।
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : बिहार प्रांत के रोहतास जिले में स्थित एक छोटे से शहर सोन नद तट पर स्थित डेहरी-ऑन-सोन में एक सामान्य से परिवार में मेरा जन्म हुआ। बचपन से ही हिन्दी साहित्य के प्रति लगाव के कारण, हिन्दी की फुटकल कविता, कहानी, नाटक,गीत आदि लिखने का मेरे भीतर बिरवा पड़ा। पहली स्वरचित कविता का प्रकाशन नवीं कक्षा में पढ़ने के समय हुआ जो तूफान नामक हिन्दी साप्ताहिक अखबार था। इस कविता के प्रकाशन ने मुझे हिन्दी साहित्य में अनुस्यूत कर डाला। धीरे-धीरे हिन्दी साहित्य की कसौटी पर मैं कसता हीं चला गया और मैं काव्य पाठ भी करने लगा। मेरी पहली पुस्तक सात कवियों द्वारा रचित संयुक्त काव्य संकलन “काव्य कुसुमाकर”, त्रिवेणी प्रकाशन सुभाष नगर डेहरी, डालमियानगर, रोहतास, बिहार से प्रकाशित हुई, प्रकाशन वर्ष 2018। दूसरी पुस्तक किशोर विधा निकेतन भदैनी वाराणसी से “किसके सहारे” नाट्य संकलन, प्रकाशित हुई, प्रकाशन वर्ष 2019। जिसमें कुछ नाटकों का सफल मंचन भी किया जा चुका है। कुछ साझा काव्य संकलन जैसे- काव्य कुसुम, श्री नर्मदा प्रकाशन लखनऊ, कोरोना काल में दलित कविता, काव्य रंग, रंगमंच प्रकाशन जयपुर राजस्थान प्रकाशनाधीन है। अमर उजाला, सोनमाटी, पहचान आदि पत्रिका एवं वेव पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
indiBooks : साझा काव्य संग्रह ‘काव्य प्रभा’ में अन्य सहयोगी रचनाकारों के साथ सहयोगी रचनाकार के रूप में आपका अनुभव कैसा रहा?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : साझा काव्य संग्रह ‘काव्य प्रभा’ मेरी अब तक की दूसरी साझा काव्य संग्रह है। साझा काव्य संग्रह की बात करे तो अज्ञेय को इसका अग्रदूत कहना उचित होगा। हिन्दी साहित्य में इसी को प्रयोगवाद कहा जाता है, जहाँ वैविध्य विचार को एक हीं थाल में सजाया जाता है। मुगल काल में जहाँ मीना बाजार की परंपरा थी वहीं आधुनिक काल में साझा काव्य संग्रह द्वारा विविध विषयवस्तु को शुद्धि पाठकों तक पहुँचाने की कोशिश है। पुस्तक के अन्य सहयोगी रचनाकारों के साथ सहयोगी रचनाकार के रूप में मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा। इस काव्य संग्रह के माध्यम से हीं मुझे अन्य रचनाकार की रचना पढ़ने को मिली इसके साथ हीं इनसे मेरा साहित्यिक ही नहीं आत्मिक संबंध भी बना। विविध प्रंतों की संस्कृति से भी अवगत होने का सुअवसर प्रप्त हुआ।
indiBooks : साझा काव्य संग्रह ‘काव्य प्रभा’ में आपकी रचनाएं किस विषय पर आधारित हैं?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : साझा काव्य संग्रह ‘काव्य प्रभा’ में मेरी रचनाएं व्यक्ति अथवा समाज को निराशा से आशा की ओर उन्मुख करती रचनाएँ है। तो कुछ रचनाएँ मानव मन के भीतर व्याप्त लोलुपता को खत्म कर सर्व हिताय सर्व सुखाय की बात करती है।
indiBooks : साहित्यिक सेवा के लिए आपको अब तक कितने सम्मान प्राप्त हुए हैं? क्या आप उनके बारे मे कोई जानकारी देना चाहेंगे?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : साहित्यिक सेवा के लिए मुझे अबतक एक सम्मान प्राप्त हुआ है जो श्री नर्मदा प्रकाशन लखनऊ की ओर से ‘काव्य श्री साहित्य सम्मान’ है। यह सम्मान मुझे प्रकाशन द्वारा आयोजित साझा काव्य संकलन में प्रतिभाग करने पर दिया गया है जिसमें मैं चयनित हुआ था।
indiBooks : क्या आपकी पूर्व में कोई पुस्तक प्रकाशित हुई है? यदि हाँ तो आपकी पहली पुस्तक के बारे में बताएं?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : हाँ! मेरी अब तक दो पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। मेरी पहली पुस्तक सात कवियों द्वारा रचित साझा काव्य संकलन ‘काव्य कुसुमाकर’ है। यह वर्ष 2018 में त्रिवेणी प्रकाशन डेहरी-ऑन-सोन, रोहतास, बिहार से प्रकाशित है। इसमें मेरी कुल दस रचनाएँ सम्मिलित है जो मेरी प्रारंभिक दौर की लिखी कविता है। जिसे मैं कविता में एक प्रयोग के रूप में देखता हूँ।
indiBooks : आप कब से लेखन कर रहें हैं और लेखन के अलावा आप क्या व्यवसाय करते है?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : मैं करीब सातवीं कक्षा में पढ़ता था तभी से कविता, कहानी, नाटक लिख रहा हूँ। केदारनाथ अग्रवाल की कविता ‘बसंती हवा’ तथा शिव मंगल सिंह सुमन की कविता ‘उन्मुक्त पंछी’ पढ़कर मेरे मन में कविता लिखने की प्रेरणा मिली। मेरी पहली कविता नवीं कक्षा में पढ़ने के समय तूफान साप्ताहिक अखबार में प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक ‘काँव-काँव’ था। लेखन के अलावा मैं शिक्षण व्यवसाय से जुड़ा हूँ। मैं राजकीयकृत इन्टर कॉलेज बारूण, औरंगाबाद में राजनीति शास्त्र विषय में प्रवक्ता पद पर प्रतिनियुक्त हूँ।
indiBooks : आपकी पसंदीदा लेखन विधि क्या है, जिसमें आप सबसे अधिक लेखन करते हैं?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : आपकी पसंदीदा लेखन विधि क्या है? यह प्रश्न मुझसे बहुत बार पूछा जाता है। यह प्रश्न मुझे अक्सर असमंजस में डाल दिया करता है। मेरा मानना है कि लेखक किसी सीमा में आबद्ध या अनुस्यूत नहीं रह सकता है। खासकर जब वह समाज के उद्बोधन के लिए लिखता हो। मैंने बहुत सारी विधाओं में लिखता हूँ जैसे- कविता, कहानी, नाटक, निबंध, समीक्षा, हाइकु आदि।
indiBooks : हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के उत्थान पर आप कुछ कहना चाहेंगे?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है और हिन्दी हमारी राजकीय भाषा है। साहित्य समाज का दर्पण है तो लेखक उस दर्पण में पड़ने वाला छवि है। हिन्दी पूणतः वैज्ञानिक भाषा है। हिन्दी साहित्य का उत्थान हिन्दी के प्रचार-प्रसार से होगा। रोटी और रोजगार के अवसर हिन्दी भाषा में सृजित करने पर हमें बल देना चाहिए। भाषा और साहित्य दोनों के बीच अनुनाश्रय संबंध है क्योंकि साहित्य एक दस्तावेज है और भाषा उस दस्तावेज का अंकन है। भाषा और साहित्य संस्कृति को एक आधार देते हैं। नवजागरण काल में हिन्दी को लेकर एक बात कही गई थी जिसे भारतेंदु ने अपने युग में कहा था। भारतेन्दु की यह बात भारतेन्दु युग में ही नहीं आधुनिक काल में भी उतनी ही प्रासंगिक है जब देश में हिन्दी को लेकर आन्दोलन चलाएँ जा रहे थे।
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।। निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।
– भारतेन्दु हरिश्चन्द्र”
indiBooks : लेखन के अलावा आपके शौक या हॉबी?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : मुझे लेखन के अलावा साहित्यिक किताबें पढ़ना, हिन्दी पुराने फिल्मी गीत सुनना, यात्राएँ करना अधिक पसंद है।
indiBooks : क्या वर्तमान या भविष्य में कोई किताब लिखने या प्रकाशित करने की योजना बना रहें हैं? यदि हां! तो अगली पुस्तक किस विषय पर आधारित होगी?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : हाँ! वर्त्तमान समय या भविष्य में कई किताब लिखने या उन्हें प्रकाशित करने की योजना बना रहा हूँ। दो कविता संकलन, एक कहानी संकलन तथा एक एकांकी नाटक जो पूणतः प्रकाशानार्थ तैयार है केवल उनकी भूमिका लिखना शेष है। फिलहाल अगली जिस पुस्तक को प्रकाशित कराने की योजना बन रही है वह काव्य विधा पर आधारित होगी।
indiBooks : अपने पाठकों और प्रशंसकों को क्या संदेश देना चाहते हैं?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : मैं अपने पाठक एवं प्रशंसकों को को यह संदेश देना चाहता हूँ कि अपनी भाषा में कही गई बात ही साहित्य है। साहित्य समाज का सर्जक है। व्यक्ति कोई भी काम करे पढ़ना-लिखना अनवरत् जारी रखे। सत्य पर झूठ का आवरण चढ़ाने से सत्य का लोप उसी प्रकार नहीं होता है जिस प्रकार प्राच्य से उठने वाली सूर्य किरणें को किसी थैले में बंद कर लेने से उसके किरणों का लोप नहीं होता।
indiBooks : आपके पाठकों को काव्य प्रभा क्यो पढ़नी चाहिए? इस बारे में कुछ कहना चाहेंगे?
Abhishek Kumar ‘Abhyagat’ : पाठक को काव्य प्रभा साझा काव्य संकलन इस लिए पढ़ना चाहिए क्योंकि इस संग्रह में समाज का हर विषय को कविता में गढ़ा गाया है। यह पुस्तक एक महोत्सव के रूप में है। पुस्तक के माध्यम से कवि द्वारा विविध आयाम को एक स्थान पर रख कर संपादक ने अपने समाज के प्रति दायित्व का उचित निर्वहन किया है।
About the ‘Kavya Prabha‘
साहित्य के सभी रसों से पगी ‘काव्य प्रभा’ एक मित्र की भाँति कभी आपको गुदगुदाएगी तो कभी आपके मन-मस्तिष्क को झकझोरती-सी प्रतीत होगी। इस पुस्तक में जहाँ एक ओर विशुद्ध हिंदी की रचनाएँ आपके मन में पैठ जमाती लक्षित होंगी, वहीं दूसरी ओर उर्दू के कुछ ख़याल भी अपना जादू बिखेरते नज़र आएँगे। काव्य प्रभा में स्थापित साहित्यकारों के साथ-साथ नवोदित रचनाकार भी आपको अपनी साहित्य सुरभि की मोहक बयार से सहलाएँगे। ‘काव्य प्रभा’ के सभी रचनाकार साहित्य रूपी सागर के उन अनमोल मोतियों की तरह है जिनकी तलाश हर साहित्य प्रेमी को होती है। उम्मीद है इन्हें पढ़कर साहित्य रसिकों की साहित्य पिपासा अवश्य ही शांत होगी।