
Book Information’s |
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Author
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Amitabh Satyam
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ISBN
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978-93-87863-96-5
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Language
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English
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Pages
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282
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Binding
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Paperback
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Genre
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Social Science
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Publish On
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August, 2018
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Publisher
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Bloomsbury India
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सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और वातावरण ने पति-पत्नी के संबंधों को ढालकर कैसा बना दिया है, ये किताब उस विषय पर लिखी गयी है। लेखक ने किताब को तीन हिस्सों में बांटा है। पहले हिस्से में चार अध्याय हैं और ये मुख्यतः स्त्री-पुरुष संबंधों और समय के साथ उनमें आये बदलावों पर आधारित है। दूसरे हिस्से में पांच अध्याय हैं। इसमें ये दर्शाया गया है कि कैसे कानून एक पक्ष को पहले ही दोषी माने बैठा है। कानून स्त्रियों के पक्ष में झुके हैं जबकि लेखक ऐसे कई उदाहरण देते हैं जहाँ स्त्रियाँ भी उठी ही हिंसा और द्वेष का प्रदर्शन करती दिखती हैं, जितना पुरुष।
लेखक यहाँ प्रताड़ित करने वाली पत्नियों के लक्षण भी बताते हैं। आगे आठवें और नौवें अध्याय में वो उन कानूनों पर चर्चा करते हैं जिनपर कई लोगों की रोजी-रोटी टिकी है। इन कानूनों के न होने से, मुकदमेबाजी के आभाव में, एक पूरा वर्ग बेरोजगार हो जाएगा। तीसरे हिस्से में वो बताते हैं कि ऐसे कानूनों से खुद को बचाने के लिए पुरुषों को क्या करना चाहिए। सिर्फ भारतीय संस्कृति को शर्मिंदा करने के उद्देश्य से बने कुछ मिथक भी वो तोड़ देते हैं।
आखरी हिस्सा सिर्फ एक अध्याय का है, जहाँ वो कहते हैं कि अभी सारी उम्मीदें खत्म नहीं हुई। जैसे सभी पुरुषों को बुरा नहीं कहा जा सकता वैसे ही सभी स्त्रियाँ बुरी हों, ऐसा भी जरूरी नहीं। अपनी बेटियों के नाम लिखी एक चिट्ठी से, लेखक अपनी किताब का अंत करते हैं। यहाँ वो अपनी ओर से संबंधो, विवाह, सशक्तिकरण और जीवन जैसे मुद्दों पर बच्चियों को अपनी सलाह देते हैं।
अगर सोचा जाए कि ये किताब किसके लिए लिखी गयी है तो कई नाम याद आते हैं। कानून बनाने वालों और मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों को इसे पढ़ना चाहिए ताकि कानून की खामियां उन्हें भी नजर आयें। स्त्रियों और पुरुषों दोनों को इसे ये समझने के लिए पढ़ना चाहिए कि किसी सम्बन्ध से कैसी अपेक्षाएं रखी जाएँ, और क्या करना एक पक्ष का शोषण होगा। ये किसी तयशुदा पाठकवर्ग के लिए नहीं लिखी गयी इसलिए ये बोझिल अकादमिक भाषा में लिखी किताब नहीं है।
नारीवाद के नाम पर होने वाली कर्कश बहसों के बीच अगर सही और गलत को तर्क की कसौटी पर देखना हो तो एक बार इस किताब पर विचार किया जा सकता है।